रायपुर। शास्त्रों में उल्लेख है कि परिवार में किसी की असमय मृत्यु हो जाने से, माता-पिता जैसे सम्मानित लोगों का अपमान करना, आदि … दोषी महसूस करना। इसके परिणाम पारिवारिक अस्थिरता, बच्चों और पोते-पोतियों के विकास में बाधा, अचानक बीमारी, संकट, धन की कमी, असंतोष आदि हैं।
अष्टमी तिथि का श्राद्ध मुख्य रूप से पितृ श्राद्ध के लिए निर्धारित है। शास्त्रों में वर्णित अष्टमी के दिन श्राद्ध कर्म के नियम विष्णुपद के सोलह वेदी मंडप में 14 स्थानों पर और पास के मंडप में दो स्थानों पर किए जाते हैं और यह श्राद्ध बिना माता-पिता के लिए भी तुरंत मान्य कहा जाता है। जीवित। अष्टमी श्राद्ध में आठ ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है। सबसे पहले अपने दैनिक कार्यों को छोड़कर घर की मुख्य दक्षिण दिशा में लाल वस्त्र धारण करें। लाल कपड़े पर पूर्वज का चित्र या चिन्ह लगाएं। पितरों के लिए तिल के तेल का दीपक जलाएं, गूगल की धूप जलाएं, गुड़ और तिल को पानी में मिलाकर बन तत बनाएं। बुत लाल चंदन और लाल फूल। कुआसन पर बैठकर भागवत गीता के आठवें अध्याय का पुन: पाठ करें। फिर ब्राह्मणों को गुड़, दलिया, जलेबी, शुद्ध सब्जियां, लाल फल, लौंग और इलायची का भोग लगाएं। भोजन के बाद उन्हें विदा करने से पहले उन्हें जितना हो सके कपड़े और पैसे देकर आशीर्वाद दें।
श्राद्ध के दिन जीवितपुत्रिका व्रत भी रखा जाता है। अपने बच्चों के सुख, दीर्घायु, स्वास्थ्य और सौभाग्य के लिए माताएं इस दिन प्रदोष काल यानी शाम के समय पूजा और व्रत करती हैं, जिससे हर महिला को अपने पुत्र और लंबे पोते का सुख प्राप्त होता है।