रायपुर। विष्णु पुराण में पूर्वज के साथ-साथ ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, आठ वसु, वायु, विश्वदेव, पितृगण, पक्षी, मानव, पशु, सरीसृप, ऋषि भी हैं। और मरने वाले अन्य सभी प्राणी संतुष्ट थे।
प्रत्येक गृहस्थ को चाहिए कि वह देवताओं को धन से, पितरों को काव्य से, भाइयों, अतिथियों और साधुओं को भोजन कराकर प्रसन्न करे। इस तरह, वे प्रसिद्धि, मान्यता और अच्छी दुनिया प्राप्त करते हैं। गाय दान करने, भूमि दान करने, धन खरीदने का विधान है। चतुर्थी श्राद्ध को चौथ श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
चतुर्थी श्राद्ध कैसे बनाते हैं
पितृ पक्ष श्राद्ध पर्व श्राद्ध है। इन श्राद्धों की पूर्ति के लिए कुटुप, रोहिन आदि… मुहूर्त शुभ माने जाते हैं। दोपहर बाद तक श्राद्ध से जुड़ी सभी रस्में पूरी हो जाएंगी। श्राद्ध के अंत में तर्पण किया जाता है।
गरुड़ पुराण, पितृ पक्ष श्राद्ध तर्पण के नियम के अनुसार, जिनके माता या पिता या दोनों ने पितृ पक्ष में इस पृथ्वी को छोड़ दिया है, उन्हें अश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अश्विन अमावस्या तक पूर्वजों को जल, तिल, फूल अर्पित करना चाहिए। माता-पिता की मृत्यु के दिन ब्राह्मणों को उनकी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार उनके नाम से भोजन कराना चाहिए।
पितृ पक्ष के दौरान भोजन के लिए आने वाले ब्राह्मणों को दक्षिणा नहीं दी जाती है। तर्पण या पूजा करने वालों को ही इस कर्म के कारण दक्षिणा दी जानी चाहिए। चतुर्थी श्राद्ध मृतक परिवार के सदस्यों के लिए किया जाता है जिनकी चतुर्थी तिथि को मृत्यु हो गई है। इस दिन शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को श्राद्ध किया जा सकता है।